Sunday, May 13, 2012

‘‘चाँद तन्हा है’’ ग़ज़ल संग्रह से


वह रब मेरे ख़्आबों को ताबीर में लाना भूल गया,
लगता है जैसे वो मेरी तकदीर बनाना भूल गया।।
हमतो बना के बैठे थे इक अपने नशेमन का नक़्शा,
मगर वो वक़्ते-ऐन हसीं तामीर कराना भूल गया,
सज़ा मौत की दी उसने पर घायल करके छोड़ गया,
अजब शिकारी था वो क़ातिल तीर चलाना भूल गया।।
रुख़े-सनम को बसा के आँखों में वो वापस आया था,
कैसा मुसव्विर था फिर भी तस्वीर बनाना भूल गया।।
कभी न पूरी होने पायी इस दिल की कोई हसरत,
वक़्त ‘नाज’ रांझे से उसकी हीर मिलाना भूल गया।।
‘‘चाँद तन्हा है’’ ग़ज़ल संग्रह से